श्री यमुना के किनारे ,कानों खेले ग्वाल संग ,
कटी पीताम्बर,कर मा वेणु ,मोरपिच्छ सोहे जैसे अनंग !-----श्री--
पानी भरन को गोपियन आवत ,कानों करत छंद !
कंकरी मारी मटुकी फोरे,भींजे चोरी -अंग ----श्री-----
काहे कान्हा ठिठोरी करत हो,लाज से अखियाँ बंद
"बेला"के प्रभु मन ही समाओ ,जग को काहे उमंग !
श्री यमुना के किनारे कानो -------------
बेला
३-१-१९९२ /८.१५.ए.एम्.
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