झूला झूले कान्हा राधिका के संग,
खिली है व्रज में आज बसंत.- झूला झूले....
तरुवर डोले, बेलाय झुमंत,
अलिगण गुंजत लिये उमग.-झूला झूले......
काले काले कान्हा चम्पेरी राधा,
सोहत जो री !देख रह्यो अनंग .
ब्रज के वासी झूमे तरंग,
"बेला"मुदित भई खिली अंग अंग.-झूला झूले....
बेला
२२-३--१९९२ /७.४०.ए .एम्.
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