मिटादो प्रभु !जनम मरण का खेला !
बहुत ही नाच नचायो ,इस तन को
अब तो उबारो कन्हैया !---मिटादो.....
माया मोह ने खूब लुभायो
सत्-असत् में खूब डुबोयो
अब काहेका मेला?!----मिटादो.........
जीवन बगिया सूख ने लगी है,
तन मन सब अब बैर पड़े हैं
"बेला" रटे जप माला --मिटादो.........
बेला
४-३-२०१२ /८.०५.पी.एम्.
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