हरि! मोरी हरी ले तू अभिमानी
जिस मिट्टीसे काय बनी है .
उसी में है समानी -हरि....
रुप गुण के मोह फसी है,
धन मद हुई गुमानी ;
हरि नाम को जाप ना कीन्हो,
जी भर करी सेतानी---हरि ......
"बेला"अब तो विनती करत तुम्हारी ,
थोरी रही ये जिन्दगानी--हरि..........
बेला
१०-३-१९९१/४.१०.ए.एम्
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