कैसे आऊँ तुम्हारे धाम ?
व्याकुल जियरा ,व्याकुल मनवा
नैन बरसे अविराम !----कहो..
घायल हिरनी प्यासी दौडी,
झंझीर पड़ी है पाँव ---कहो...
प्यासी हिरनी हूँ ,कैसे बुझाऊँ प्यास ?
बिन लोहे की जंजीर पड़ी है पाँव -कहो..
बेला
२९-८-१९८५/७.३०.पी.एम्.
अपने चरणों में बिठा ले ,
खता को मेरी तू बिसरा दे ;
हलाकि सी मुस्कान से ,मेरे
दिल की झोली तू भर दे |
आई भिखारिन द्वार पे तेरे ,
आस बड़ी है ,कहीं तू न तोड़े ;
"बेला"के फूलों की माला ,
देख, युँ ही सूखी ना पड़ जाए !
बेला
११-४-१९८५ /२.४५.पी.एम्
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