ओ मनहारी !
श्यामली छबि तेरी मनमे बसी है,
नयन कटारी दिल पे चली है ;
बंसी वट पे तान सूना दे ,
मुझको भी अपना ले |
राधिका को तूने रिझाया ,
ग्वाल-बाल को तूने खिलाया ;
मैं अभागिन बैठी रोऊँ,
मुझ पे भी ज़रा ध्यान दे दे |----ओ मनहारी...
मैंने कैसा दोष किया है ?
तेरी भूमि तक आ ना पाऊँ ;
तड़प तड़प के बिरहन बैठी ,
मिझ पे भी करम कुछ कर दे |-ओ मनहारी...
मैं पापी ,तू पापन हारा ,
दीन दु:खियों क तारण हारा ;
शरण में तेरी रहेना चाहूं ,
अपना हाथ अब तो फैला ले !--ओ मनहारी..
बेला
९-४-१९८५/७.०० ए एम्
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