मंगल दरसन दीज्यो गुंसाईं
बिनती करत री ! मैतो हारी --मंगल....
कल न परत तुम बिन पल छीन छीन
कैसी ये लगन लगाईं
सुध बुध मोरी बिसराई
हरपल रहत उदासी ----मंगल....
तुमरे दरस की मै अभिलासी
निस दिन डगर बुहारी,
काहे गोकुल छांड्यो गिरिधर
बरी जन दियो भुलाई --मंगल....
अखियाँ तो कालिंदी भई है,
झर झर बरसे पानी;
हाय ! जिया की अगनी ऐसी
जिस में "बेला"सुखाई --मंगल....
मात पिता तुम हों मेरे ईश्वर,
बिन मायके झुलसाई;
कबर बुलावा आएगा
"बेला" सोच मुरझाई ---मंगल....
बेला
१०-३-१९९१ /४.१०.ए एम्
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