बरसों बीते क्युं नहीं आये?
ब्रिज जन तेरी डगर बुहारे ,
श्याम काहे तू वचन बिसारे;
राधा रो रो तन को सुखाये |
मथुरा गये भये बरसों,
कन्हाई तोहे
मथुरा गये भये बरसों |
कुंज गली उत् कोकिल गावत
टीस उठत हिरदयसों
भये बरसों,--मथुरा ....
पनघट सूना,सूनी गैया
नीर झरत नैनं सों
कित गये मोरे श्याम मुरारी
मुरली धरन अधर सों --भये ... मथुरा ......
ग्वाल बाल सब होली खेलत है,
ललितादिक सहियार सों
बाट देख देख पीरी भई है ,
राधा गोरी बिरहा सों भये बरसों --मथुरा....
"बेला" की माला सूख रही है
कैसे मिलन हों हरि सों-भये बरसों -मथुरा गये ........
बेला
७-३-१९९१ /५.३०.पी.एम्
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