-----ये मन तो भया मछली ,
-----वेध किया अर्जुंन ने विवेक बाण से ;
-----मिल गई तब भक्ति ,द्रौपदी बन के ;
-----बिन मारे इस मन को ,भक्ति मिले न सांई !
-----मिले कृपा भगवान की ,तो , मन-मछली जाय छेदाई ! !
-----तो, "बेला" कर के स्मरण हरि का ,
-----ताक बाण , देख , तव ,अज्ञान की
----मछली छेदाई ! ! !
२९\१\२०२०
९. इ.एम्.
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