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मैं और मेरी गिटार


(अ )

-----मैं  और मेरी गिटार ,गुनगुनाते हैं ,बन के यार | 

-----रब ने दी है जो सज़ा ,नहीं मतलब के बिना ,
-----मनुष्य ने जंगल को काटा ,फोड़ा बम्ब से दरिया ;
----- अवकाश को भी कहाँ छोड़ा ? ! 
-----तोड़ दिया ओझोन  का परदा  ! 

-----मुर्गी खाई, खाया बकरे का पाया ,
-----साँप , चिमगादड़ ,न जाने अनगिनत जीवों  को खाया ! 
-----पानी को रंगीन बनाया , भर के मदिरा का प्याला ,
-----पशु से भी बन कर बदतर ,संयम छोड़ा ,
-----हर देस में मानव सागर उमटाया   ! ! 

-----जब जब बोज धरती पे उभरा ,रब ने कोई नया खेल खेला ;
-----कुरुक्षेत्र से ले कर , वर्ल्ड वोरों का ,
-----कहर ,सृस्टि पे था फैलाया ,
-----इस बार भेज रोग ये नया ,
-----सबक फिर से अच्छा सिखलाया | 

-----अब तो सोच  समझ के करो सांझा ,
-----छोडो कुदरत को छेड़ना ज्यादा ;
-----सत्ता से बढ़ कर है ,समजो  , भाईचारा ,
-----"बेला" और गिटार का   है ये  , गुनगुनाना ! | 
                                           २६\३\२०२० 
                                               ३.३०.  पि.एम्. 



                   (ब) 

-----मैं  और मेरा गिटार , गुनगुनाता हैं  बन के यार | 

-----कभी वो मुझे कुछ सुनाती है ,
-----कभी मैं  कुछ गा  लेती हूँ गाना ;
-----बन गये  हैं ,एक दूजे का सहारा ,
-----मस्त बन ,ले रहें ,जीवन का हिलोरा ! 

-----वो टुनटुनाती है ,खश हाला ,
-----मैं  भी खुश ,झनझना के टंकारा ! 
-----हमें इन्तज़ार  नहीं ,चौदह फरवरी का ,
-----हमारे लिए ,हर दिन ,हर पल है , प्यार का इजहारा  | ! 

-----जीवन बग़िया  में है ,अनिल लहराता ,
-----ले के खुश्बू  ,परिमल ,"बेला" के फूल का | 
                                              २६\३\२०२० 
                                                    ११. ५. पि.एम्. 

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