जिस दिल में छुपा के रक्खा तुम्हें ,
वो दिल तो टुकड़े टुकड़े हुआ ;
अब कैसे, कहाँ मिले तुम से ,
ये सोचते सोचते डूब गया !
माना की कठिन है पाना तुम्हें ,
मैंने फिर भी बहोत यत्न किया ,
पर न जाने किस कारण से
तूने छल से कनारा किया ? !
मिल गए जिसे तुम , भाग उस के खील गये !
मैं अभागी, क्यों न अपना तुम्हें कर पाया ?!
"बेला"फूल की माला सुखी ,और दिये आस के बुझ गए !
अब रो रो कर जीवन बेरंगी यूँही बीता जा रहा ! ! !
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