Pages

नज़र क्युं फेर ली ?



श्याम ! नज़र क्यूं  फेर ली ?
बार बार आवाज़ दे हारी ! 
इस संसार की मायाजाल में 
फसा के तू मुस्कुरा रहा है,
क्या करूं  मैं  ,थकी हारी ;
श्याम ! नज़र क्यूं  फेर ली ?
बिना तेरे प्यार के सिंचन से 
"बेला" गई मुरझाई,
अब तो देख ले मुरलीधारी ,
श्याम ! नज़र क्युं फेर ली ?
                          १८\११\२०२२ 
                               १०. ए एम 

No comments:

Post a Comment