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मन चीझ क्या है ?



 मन चीझ क्या है , कुछ समझ न आये ,
कभी तितली बन उड़े , कभी भ्रमर बन  गुनगुनाये ;
कभी मधुमक्खी बन पुष्प से लिपट रसपान   करे ,
कभी हवा का झोंका बन ,आसमान पे लहराए ;
"बेला", छोड़ सोचना , और संग अनिल के -
मेहकाती  चल , हર  जीव के प्राण सारे  ! 
                                    २२\१२\२०२२ 
                                           ५. ४० ए एम 

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