१ हिरदय में कई घाव छुपाए बैठी हूँ ,
--------अपनों को दूर जाते देखती बैठी हूँ ;
--------ग़म नहीं ,कोई गीला शिकवा नहीं ,
--------बस "बेला" की तरह खील फॉरम फ़ैलाए बैठी हूँ |
३०\११\२०१९
८.५० .इ.एम्.
२ अजीब कहानी है ये , दिल स्थीर नहीं रहता !
---------कभी ग्यानी, कभी दुन्यवी भावों में लुढ़कता ही रहता !
---------मेरे रब ! तू भी क्या है सोचता रहता ,
---------ये जीव का हाल बनाता बिगाड़ता रहता ? !
३०. 1. ०१९ ९. ०.इ.एम्.
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