-----एक वृक्ष है, सालों से ,एक भूमि पे खड़ा था |
-----वो जन्म भूमि पे , जहाँ बीज में से अंकुर बना ;
-----हर मौसम झेलता हुआ -कली में से फूल बना ;
-----फिर फलों से भर लच गया |
-----हर आंधी तूफ़ान में डटा रहा ,
-----काल के थपेड़ों से झूमता ,दृढ़ वृक्ष हँसता रहा |
अचानक
-----एक दिन ऐसी हवा चली ,न देखि थी ,पूरी ज़िन्दगी में !
----- आठ दसकों तक !
-----उस तेजी में पत्ते उड़े , और आखिर
-----वृक्ष झुक गया,उस तूफ़ान में !
-----जा गिरा दूर दूर कोई प्रदेश में !
-----वहाँ न अपनी मिट्टी की सों ,
-----न अपनी धरती का प्यार !
-----मूल कैसे जुड़ेंगे ये नये बागान में ? !
-----दिल मचलता है , जी गभराता है ;
-----वृक्ष कब तक रहेगा खीला खीला ?
-----महेनत तो है , झूलते, झूमते रहना ;
-----कोई पत्ता पीला ना दिखाना ;
सोचता है ,
-----फिर से बीज बन जाऊँ ,और नये स्वरूप में बस जाऊँ |
-----सूर्य की किरनें ,चाँद की चॉँदनी ,
-----श्याम की दया की निर्झरणी ;
-----सब से है विनती ,फैलाओ बाँहें अपनी ;
-----और सिमटा लो , इस बूढ़े जर्जरीत वृक्ष की शाखाओं को ! !
१२\१०\२०१९
5. २५. ए .एम्.
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