ऊपर मेघाम्बर छाया,
निचे हरे हरे सद्य स्नात
वृक्षों की माया !
बीच में वर्षाधारा;
ऐसा लगता है,मानो,
तृप्त बालक
माँ की गॉद में सोया ! !
हँस हँस के गुल महोर खिल उठा ,
पीला गरमाळा झुक गया ;
बरखा रानी ने प्यार बरसाया ,
धरती ने हरा दामन बिछाया |
चहक पपीहे की ,और दामिनी का तमाशा--
--देख,"बेला"ने भी अपना बाग़ महकाया | !
२९\६\२०१९
6. २५ ए। म.
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