मन क्या है?
मन है भी,और
मन नहीं भी!
मन है केवल एक एहसास .
मन चंचल है, मन चलित है
मनके ही कारण सब होता,
मन है रोब जमाता!
मनका ज़हर बहुत दुष्कर
मन के ज़हरको कौन हटाता?
सर्प-ज़हर तो फिरभी जाता
सपेरा जब मंतर फुकता
मन दब नहीं सकता
पत्थर निचे नहीं कुचलता
मन मोह, अहम्, क्रोध निपजाता
अपना चक्कर तन पे चलाता.
मनको धकेलो,ना गिनो उसका भरमाना
रटते रहो नाम जप-माला
ठंडी होगी मन की ज्वाला
'बेला'को फिर बिखारायेंगे
जब श्याम सलोना आता.
बेला
१-२-२०१२/११.३०.ए.एम्.