आइये गणपति गजानन ,उमापति शिवजी के नंदन ,
मात गौरी की गोद सुहावन, भक्तजनों के हे भीड़ भंजन !
एक दन्त चतुर्भुज सुंदर ,काँधे भुजंग उपवीत धरन ,
मूषकराज हे भय विनाशनन ,पधारिये मुज रंक के आंगन !
कीरिट हार शोभित रत्न कुंडल ,प्रभावी सूर्यसम प्रकाशधारण ,
जसुद-दूर्वा मोदक से रंजन,नमामि चित्तरंजन गजानन |
,विरंचि विष्णु, शिव, करे तव स्तवन ,निरंतर सुरासुर करे तुझे वंदन !
नमन तुझे वक्रतुण्ड गजकर्णन ,मुक्ति देत लम्बोदर ,तोड़ी बंधन !
अनन्य भक्तिभाव से मंजुल रव , उतारे आरती,गंध-धुप संग ,
"बेला" हरषी ,पा के तव दर्शन, सदा रो अमिभरे तव नयन !
११ सप्टेंबर २०२३
१२। १५ दो पहर
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