वृक्ष वृक्ष पे डार डार पे ,खील उठी है मंजरी !
अलिगण की गुंजन भी मत्त ,बजा रही खंजरी !
बन बन घूमी , फोरम के संग,देखो, ये मंजरी !
सौरभ तंतु से बंधी हुई, झूल रही ,वल्लरी !
२७ ऑगस्ट २०२३
११। ०० ए ऍम
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