Pages

व्रज लागे अति नीको

 




 

सखी रि , ! मोहे व्रज लागे अति नीको ,
मिले जहाँ  श्यामसुंदर दरसन अति मीठो ! 
कुंजवन की गलियां में , बंसी नाद घेरे नैनन को ;
झूले राधा संग कनैयो , मधुर मधुर मुस्कातो !
झूमे "बेला" होले  होले  , पेखी  , रसिक रंगरातो ! 
प्रणमे  राधावर को ,थामी हिरदय  हरष   को |  
                                      १९ दिसंबर २०२३ \८. ए  ऍम

No comments:

Post a Comment