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गोपी याचना (गोपीगीत पे आधारित )



गोपी -----"हमारा प्रेम पानी से मछली जैसा ,हमें पानी से बाहर मत फेंको -कन्हैया | "
कृष्ण ----"कहती थीं ; जी नहीं सकती मेरे बिना , कैसे श्वसित हो ,अब तुम मेरे बिना ?"
गोपी -----"हमें तो तेरी कथामृत का पान मिला ,जिस से तप्तजीवन को सहारा मिला | 
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हे कमलाक्षी ! तव  नेत्रविज से  किया वध हमारा ,हम तो तव  दासी नि ::शुल्का !  
मुक्त की , कालीनाग से विष युक्त  धारा ,असुर सहित इन्द्रजी को तारा | 
आप हो , यशोनंदन ! सर्व के अंतर्ज्ञाता ,प्रभु ! क्यों हमें आपने ये ये व्यथा से मारा ?
हे कान्त ! जन्म-मृत्यु भय से तारनहारा ! शरणार्थी को सदा अभयदान दाता ! 
हम हैं ,हे वृष्णिधुर्य ! करकमल आशिकाना , और आप है कामना के परिपूर्ण दाता  | 
व्रजजन के सब दू:ख  के हर्ता ,गर्वित भक्तजन के गर्व स-स्मित  दूरकर्ता ;
हे श्रीनिकेत ! फणीधर पे नृत्यकरंता  ! नाचो, हमारी काम फणि पर ये है उर आशा | 
मधुर बानी की प्यासी ,धरे एक आशा ,दो प्रभु दान अपनी गिरा का | 
स्मरण में है ,तव  अनुपम हास्य मंगलकारी ,स्मरण में है ,तव  ह्रदयस्पर्शी संकेत वाणी !
गोचर बेला तुझे देता दर्द ,चरणकमल को काँटा ,हमें बना रहें वो अति दू:ख  दाता | 
संध्या समय सूरज रंग से रंगीत , तव   केश  घुंघराले ,भर जाते गोरज से रंजीत 
तब मुख दर्शन की उत्सुक उत्कट कामना से हम हो जाते हैं लालायित | 
लक्ष्मीपूज्य !ब्रह्माजी के कामनापुरक  !रखो हमारे भी ह्रदय पे चरणकमल ,कमनापुरक ! 
आनंददेहि ,शोक-विनाशक ,अति-मधुरा ,तुज बांसुरी है,जैसे इच्छित अमृतधारा !
पल भी बन जाए युग ,जब संध्याकाले तुम विचरो बन में ,
तब हम प्यासी दर्शन की उठा ले परदे पलकों के | 
हम जानते हैं बनते हो तुम अजनबी , त्याग हमें आबिड़  रात्रिकाले ,हो तुम ठगी ! 
हे मोहन ! एकांत में तव लक्ष्मीरमण के स्मरण से ,
मचले मन ,बने मोहित , ध्यान धरे दर्शन का आतुरता से | 
प्रगट  भये तुम ,ब्रजजन वासी के दू:ख  हर्ता ,रोग नाशकर्ता ,
झंखना है , हमें भी दो एक बिंदु, ओ  औषधधर्ता ! 
दर्शन दीजिये हमें ,हे जगत्राता ! तारिये हमें 
सर्व गर्व  क्षति से हे रस रासदाता ! 
शरण तव  आई ,बन के सर्व बंधनत्यागी ,यथेच्छ कुरु ,अब हम तुज किंकरदासी ! " 
प्रगट हुए दीनानाथ साही हाथ , ओ ' मन में बसाई ,पायो संयोग ,हर्षित गोपी , मधुर स्मितधारी | 
ये गोपी याचना दरसाई "बेला" ने ,क्षमार्थी है, गर क्षति हो बोलमे अपने | 
                                                                                   २३\४\२०२० 
                                                                                        २.३०. पि. एम्. 
 

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