कुंज -निकुंज में हवा चल रही है ,
मन -मोहन सी महक उठ रही है !
रुनझुन रुनझुन गुंजन भँवरे की ,
तितलियाँ सारी फडफड़ा रही है !
समा बंध गया रंग रंगी है ,
घटाओं की मर मर सुनाई दे रही है !
हवा की लहरी डाल झूला रही है ,
मद मस्त समा में गुंजन उठी है !
आहा ! मधुरी सी तान आ रही है ,
धड़कन ये दिल की तुममे समा रही है !
मेरे कान्हा ! तू यहीं कहीं है ,
तेरी लुपा-छुपी तडपा रही है !
दर्शन प्यासी अखियाँ रो रही है ,
तेरा आगमन पथ वो धो रही है !
फूल "बेला" के बिछा ,अधीर हों रही है ,
हरी नाम से पलकें झपक रही है ! ! !
बेला\१९\११\२०१४
६.४५ए.एम्.
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