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कानजी -विरह

  


ये दिल बेचारा , नसीब का मारा ,
भटके यादों के बन में बन के बे-सहारा | 

पल पल छलके अंसुवन की धारा ,
सूना  पड़ा है तेरे बिन , जमना के किनारा ;
छोड़ गया कान्हा , व्रज भयो बेचारा ,
बिन कंकर से अब बहे ना , मटुकी से धारा ! 

सुन न पायेंगे बंसी , अब दो बारा ,
हाय ! नसीब ! क्यों गया राधिका का दुलारा ? 

नन्द -जसोदा हुए सुन्न , गया घर का किलकारा ,
गुंग हुए बन -उपबन में भृंग का गुंजारा ! 
जला दिया बिरहाग्नि में "बेला" का संसार सारा ! 
बदनसीब बन गया , सदनसीब जग सारा ! | 
                                   २५/११/२०२३ ३. इ एम्. 

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